Wednesday, April 20, 2011

नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन पर पुनरावलोकन


                                         
जापान में आये अत्यधिक तीव्रता के भूकंप और सुनामी ने दुनियाँ को तबाही के एक और मंज़र का गवाह बना दिया। इस भूकंप से जापान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है, यह जापान में आये अब तक के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक है। शक्तिशाली भूकंप आने से जमीन के अन्दर टेक्टोनिक प्लेटों में हुई उथल पुथल से समुद्र में हलचल हुई और यह सुनामी में परिवर्तित हो गई। इस प्राकृतिक आपदा के सबसे गम्भीर प्रभावों में से एक फ़ुकुशिमा नाभिकीय रियक्टर में धमाके होना था। भूकंप और सुनामी से प्रभावित क्षेत्र में यातायात, जल और बिजली आपूर्ति ठप हो गयी थी, जिस कारण से फ़ुकुशिमा नाभिकीय रियक्टर में ईंधन कॊ ठंडा रखने वाले शीतकों ने काम करना बंद कर दिया और नाभिकीय़ ईंधन में धमाके हुये। इन धमाकों से रियक्टरों की स्थिति लगातार बिगड़्ती चली गयी और फ़ुकुशिमा में स्थित नाभिकीय रियक्टरों में आंशिकनाभिकीय मेल्ट्डाउन की आशंका जताई जाने लगी। नाभिकीय मेल्त्डाउन या नाभिकीय गलाव किसी नाभिकीय रियक्टर की वह स्थिति होती है,  जब परमाणु विद्युत उत्पादन यंत्र पूरी तरह विफल हो जाता है नाभिकीय गलाव की स्थिति में परमाणु रिक्टरों में प्रयुक्त शीतलक काम करना बंद कर देते हैं शीतलक के निष्क्रिय होने पर यूरेनियम और प्लूटोनियम जैसे विखंडनकारी पदार्थ परमाणु भट्टी को अत्यंत गर्म कर देते हैं ऐसा होने से रेडियो-सक्रिय किरणें वायुमंडल और वातावरण में फैलकर जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों को घातक हानि पहुंचा सकते हैंही वजह है कि परमाणु भट्टी या परमाणु भवन इस्पात, कंक्रीट से पूरी तरह वायुबंद बनायी जाती है, जिसकी दीवार डेढ़ से ढाई मीटर मोटी होती है  जापान के फ़ुकुशिमा स्थित परमाणु केन्द्र में छह परमाणु रियक्टर्स हैं। फ़ुकुशिमा परमाणु केन्द्र दुनियाँ के पन्द्रह सबसे बड़े परमाणु केन्द्रों में से एक है। इन रियक्टर्स में हो रहे धमाकों के बाद यह तक कहा जाने लगा कि हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु हमले के बाद जापान दूसरी नाभिकीय विभीषिका का सामना करने जा रहा है। हालाँकि बाद में जापान के वैज्ञानिकों ने स्थिति पर अनुमानित समय सीमा से बहुत पहले काफ़ी हद तक काबू पाकर अन्य देशों के सामने मिसाल पेश की। मगर इस परिघटना ने एक बार फिर वैज्ञानिकों और नीतिनिर्धारकॊं के समक्ष कई महत्वपूर्ण और गम्भीर सवाल खड़े कर दिये, जिनसे नीतिनिर्धारक लगातार स्वयं को बचाते चले आ रहे थे।
हमारी औद्यौगिक सभ्यता का सबसे बड़ा आधार ऊर्जा है, जिसमें 85% योगदान जीवाश्म ईंधनों, कोयला, खनिज तेल एवं पेट्रोलियम गैस का है। कोयला का औद्योगिक क्षेत्र में सबसे पहले प्रयोग ब्रिटेन में तब शुरु हुआ जब वहाँ के जंगल उदयीमान औद्यौगिक क्षेत्र की ऊर्जा ज़रुरतों की पुर्ति नहीं कर पा रहे थे। कोयला विश्व के लगभग भागों में पाया जाता है और यह कई शताब्दियों तक हमारी ज़रूरते पूरी करेगा। पेट्रोलियम ने कोयले का स्थान उन्नीसवीं सदी में ले्ना शुरु किया और पेट्रूलियम का प्रयोग लगातार बढ़ता ही गया। खपत की वर्तमान दर से अगर अनुमान लगाया जाये तो पेट्रोलियम अगले कुछ और दशकों तक ही हमारी ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। साथ ही खनिज तेल के स्त्रोत भी कुछ राजनीतिक रूप से अस्थिर समझे जाने वाले देशों में ही सीमित हैं। अतः खनिज ईंधनों का संरक्षण मात्र ऊर्जा समस्या का समाधान नहीं है, यह समस्या को मात्र टालना है। आँकड़ों के आधार पर, खनिज तेलॊं के दहन से वातावरण में प्रति वर्ष 2.30 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, यानि कि लगभग 730 टन प्रति सेकेन्ड। इस कार्बन उत्सर्जन का आधा भाग पेड़-पौधों और समुद्रों द्वारा सोख लिया जाता है, शेष लगभग उत्सर्जित भाग से हमारा पर्यावरण गम्भीरता से प्रभावित होता है। वर्तमान में ऊर्जा के वैकल्पिक और नवीकरणीय साधन जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जैव ईंधन या भूतापीय ऊर्जा औद्यगिक क्षेत्र की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में पूरी तरह से समर्थ नहीं हैं, और इस क्षेत्रों में अभी शोध की महती सम्भावनायें हैं। ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा को, ऊर्जा की वर्तमान ज़रुरतों को पूरा करने वाले विकल्प के तौर पर माना जाने लगा था।
नाभिकीय ऊर्जा निश्चित रूप से स्वच्छ, विश्वस्यनीय, संहत, प्रतिस्पर्धा योग्य, और कभी खत्म ना होने वाले ऊर्जा के विकल्प की रूप में उभर कर सामने आया। वर्तमान में इस ऊर्जा को अस्तित्व में आये लगभग पचास साल से भी अधिक हो गये हैं, अतः कुछ लोग इसे ऊर्जा का विकसित विकल्प भी कहने लगे हैं। नाभिकीय ऊर्जा के तमाम सकारात्मक पहलू हैं। जिनमें से कुछ का ज़िक्र हम यहाँ कर सकते हैं। नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फ़र डाई ऒक्साइड जैसी वायुमण्डल के लिये हानिकाराक गैसें उत्सर्जित नहीं होतीं हैं, जो कि खनिज तेलों के दहन में मुख्यता से उत्सर्जित होतीं हैं। नाभिकीय रियक्टर्स लगभग हमेशा क्रियान्वित रहते हैं। इनमें ऊर्जा उत्पादन तभी रुकता है जब इनमें ईंधन भरा जाता है। सौर ऊर्जा के स्त्रोत दिन के समय ही काम करते हैं और पवन ऊर्जा के स्त्रोत तभी काम करते हैं जब हवा चलती है।  नाभिकीय रियक्टर की औसत आयु चालीस साल होती है, मगर स्थिति के आधार पर इसे लगभग बीस साल का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है। चूँकि अभी नाभिकीय ईंधन के स्त्रोतों का उतना बाज़ारीकरण नहीं हुआ है जितना खनिज तेलों का; इसलिये नाभिकीय नाभिकीय ईंधन अपेक्षतया सस्ता है जबकि कच्चे खनिज तेल की कीमत बाज़ार के भरोसे होती है। वैसे तो यूरेनियम थोडा बहुत हर देश में पाया जाता है मगर आस्ट्रेलिया और कनाडा में ही इसके बेहतर स्त्रोत हैं। नाभिकीय प्लाँट को लगाने के लिये अपेक्षतया कम जगह की आवश्यक्ता होती है। मगर इसके आसपास का क्षेत्र खतरनाक क्षेत्र माना जाता है। ऊर्जा उत्पादन के बाद बचे नाभिकीय कूड़ा की मात्रा भी खनिज तेलों, और कोयले के दहन के बाद बचे कूड़ॆ की मात्रा से बहुत कम होती है। इस तरह ऐसे तमाम कारण हैं जो कि नाभिकीय ऊर्जा को ऊर्जा के अन्य संसाधनों से बेहतर बनाते हैं, और यही कारण हैं जिनके कारण आज पूरे विश्व में सैकड़ों रियक्टर्स काम कर रहे हैं।
मगर इस सिक्के का दूसरे पहलू भी हैं। इस तकनीक के सम्बन्ध में सबसे बड़ा सवाल सुरक्षा का है। ब्रह्माण्ड के इकलौते ग्रह जिस पर जीवन है, पृथ्वी पर जलवायु, जीवन स्तर और जीवन यापन की प्रणाली समेत यहाँ बसने वालॊं का भविष्य इस बात पर भी निर्भर है कि यहाँ ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये किन तकनीकों या प्रणालियों का सहारा लिया जाता है। यह भी उपेक्षा करने योग्य नहीं है कि आज भी दुनियाँ की आबादी के बड़े हिस्से को बिजली आदि उपलब्ध नहीं है। सवाल सिर्फ़ ऊर्जा उत्पादन की प्रणाली को बदलने का नहीं है। नाभिकीय ऊर्जा का इतिहास किसी दुःस्वप्न की तरह है। नाभिकीय ऊर्जा का इस दुनिंयाँ में पदार्पण ही हिरोशिमा और नागासाकी के ज़रिये हुआ था। हालाँकि किसी एक घटना से किसी तकनीक के भविष्य के बारे में दृढ़्ता के साथ कुछ कहना आसान नहीं हैं, लेकिन नाभिकीय ऊर्जा के साथ ऐसा नहीं है। आज नाभिकीय ऊर्जा पचास साल से भी अधिक पुरानी ऊर्जा है। इस समय में इस तकनीक ने नाभिकीय ऊर्जा उद्योग की शक्ल ले ली है, आज कई व्यक्तिगत कम्पनियाँ इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। वर्तमान में नाभिकीय ऊर्जा न सिर्फ़ कई देशों में योजना निर्माण के केन्द्र में रहती है, बल्कि अन्य योजनाओं को प्रभावित भी करती है। वर्तमान में नाभिकीय ऊर्जा से जुडी तमाम अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ, संस्थायें और समितियाँ हैं।
अगर नाभिकीय ऊर्जा के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों के बारे में बात की जाये तो, सबसे पहला बिन्दु नाभिकीय ऊर्जा के ईंधन यूरेनियम के खनन से सम्बन्धित है। य़ुरेनियम एक रेडियोएक्टिव यानि कि रेडियोसक्रिय पदार्थ होता है, जिससे अत्यधिक खतरनाक रेडियोसक्रिय विकिरण का उत्सर्जन होता है। यह रेडियोएक्टिव विकिरण जीवजन्तुऒं और पेड़ पौधों के लिये अत्यधिक हानि कारक होता है। इस विकिरण से कैंसर जैसा घातक रोग होने की आशंका रहती है। यह विकिरण सीधे तौर पर इसकी खुदाई करने वाले मज़दूरों को नुकसान पहुँचाता है। यूरेनियम खनिजों की चट्टानों से निकलने वाली रेडॉन गैस और रेडियम भी जीव जन्तुऒं के लिये हानिकारक होता है। इसके अत्यधिक ऊर्जा के कण आनुवाँशिक रोग और परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं। इस विकिरण की अधिक मात्रा जीवों के प्रतिरक्षी तंत्र को हानि पहुँचाती है। उच्च कोटि के यूरेनियम खनिजों से खनन मज़दूर प्रष्ठ्भुमि विकिरण से एक हज़ार गुना तक गामा विकिरण प्राप्त करते हैं। यूरेनियम खनन की एक तकनीकइन-सीटू लीचिंगमें भी इन रेडियोऎक्टिव पदार्थों का ज़मीनी-जल में घुलकर जनता तक पहुँचने का खतरा रहता है। खनिज खदानों में यूरेनियम को रसायनिक तरीकों से अन्य पदार्थों से अलग किया जाता है, इस प्रक्रिया में भी  यूरेनियम खनिज का कुछ भाग खदानों में छूट जाता है, यह अगर वायु में खुला छोड़ दिया गया तो हवा के साथ रिहायशी इलाकों में विकिरण के खतरे उत्पन्न करता है।  यही खतरा नाभिकीय ऊर्जा य्त्पादन के दौरान बचे नाभिकीय कचरे के साथ भी है। नाभिकीय ऊर्जा के सामाजिक क्षेत्र में आने के पचास साल बाद भी अब तक नाभिकीय खतरे को सफ़लता से बिना किसी हानिकारक प्रभावों के साथ डिस्पोज़ करने की मुकम्मल तकनीक किसी भी देश के पास नहीं है। एक बड़ा नाभिकीय रियक्टर वर्ष में 25-30 टन नाभिकीय कचरा उत्पन्न करता है जो कि अत्यधिक खतरनाक होता है। सन 2000 में दुनियाँ भर के रियक्टरों द्वारा उत्पन्न कचरे की मात्रा दो लाख बीस हज़ार टन थी जो कि (10000) दस हज़ार टन प्रति वर्ष के हिसाब से हर साल बढ रही है। अमेरिका ने अपने देश में उत्पन्न क्चरे को नेवादा राज्य में उस जगह पर भंडारित करने की योजना बनायी थी, जहाँ उसने हाइड्रोजन बमों का परीक्षण किया था जिसके कारण यह जगह पहले से ही विकिरण का शिकार है। मगर पर्यावरणविदों और स्वयं नेवादा राज्य के विरोध के कारण यह अब तक टल रहा है। आँकडों के अनुसार इंग्लैण्ड में आज भी कुळ नाभिकीय कचरे का बड़ा हिस्सा डिस्पोज़ करने के लिये आज भी बचा हुआ है।  फ़्राँस ने भी नाभिकीय कचरे को ग्रेनाइट की गुफ़ाओं में भंडारित करने की योजना बनायी थी, लेकिन इसका ज़िम्मेदारी से क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। भारत में भी नाभिकीय कचरा भंडारण एक बड़ा लक्ष्य है। वस्तुतः सभी देशों का प्रशासन खनन और भंडारण से जुड़ी समस्याओं पर गम्भीर नहीं रहा। सम्पूर्ण नाभिकीय उद्योग मूलतः य़ूरेनियम बेचने और नाभिकीय रियक्टर बनाने की तकनीक का व्यावसायिक फ़ायदा लेने में ही अपना अधिकतम ध्यान लगाता है क्योंकि यही वह क्षेत्र हैं जहाँ आर्थिक फायदों की संभावनायें रहतीं हैं।         
इसके अलावा भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जहाँ नाभिकीय ऊर्जा से इतर वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों पर अत्यधिक ध्यान देना ज़रूरी हो जाता है। नाभिकीय रियक्टर बनने में  और क्रियान्वित होने में लगभग दस वर्ष लग जाते हैं अगर रियक्टर निर्माण और नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन से जुडे सभी नियमों का पालन किया जाये। इसके बनिस्बत वैकल्पिक और नवीकरर्णीय ऊर्जा के केन्द्र बनाने में और इन्हें क्रियान्वित करने में आठ महीने लगते हैं। कई देशों में नाभिकी रियक्टर्स बीस साल तक निर्माणा्धीनरहे हैं। उदाहरण के लिये मैक्सिको में लेग्युना वेर्दे रियक्टर का निर्मण कार्य सन 1977 में शुरु हुआ और 1994 में खत्म हुआ।  मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऒफ़ टेक्नोलोजी के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिये दुनियाँ भर में कम से कम एक हज़ार नाभिकीय रियक्टर्स होने चाहिये, जो कि वास्तविकता से बहुत दूर है। नाभिकीय रियकटर के निर्माण में आने वाला खर्च भी एक बड़ा कारक है। दक्षिण अफ़्रीका की सरकार को सन 2008 में नाभिकीय रियक्टर के निर्माण से सम्बन्धित टेन्डर बापस लेना पड़ा था।फिलीपीन्स में बतान नाभिकीय ऊर्जा केन्द्र का निर्माण कार्य 1974 में शुरु किया गया। बाद में इसका निर्माण कार्य एक घटना के बाद रोक दिया गया, इसकी सुरक्षा जाँच में लगभग चार हज़ार कमियाँ पायीं गयीं। 23 करोड़ अम्रेरिकी डॉलर्स खर्च करने के बाद यह सन 1984 में पूरा हुआ, जो कि प्रस्तावित बजट का पाँच गुना था।  अगर भारत की बात करें तो दस नाभिकीय रियक्टरों के निर्माण में बजट से  तीन गुना खर्च आया है। साथ ही नाभिकीय रियक्टर्स का क्रियान्वयन मूल्य भी अन्य ऊर्जा संसाधनों की अपेक्षा काफ़ी अधिक है। नाभिकीय रियक्टर्स में विकिरण से बचने किसी भी अप्रत्याशित या प्रत्याशित घटना से निबटने के लिये हमेशा सावधान रहना पड़ता है। नाभिकीय रियक्टर्स पर आतंकी हमले किसी भी देश के लिये काफ़ी परेशान करने वाले हो सकते हैं। ऐसा कोई हमला न सिर्फ़ जान माल के भारी नुकसान का कारक बन सकता है, बल्कि इससे कई पीढियों के लिये विकिरण का खतरा उत्पन्न हो सकता है। नाभिकीय रियक्टर क्षेत्रीय जनता को न के बराबर रोज़गार के अवसर प्रदान करता है, जबकि ऊर्जा के नवीकरणीय साधन जैसे पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोमास ईंधन एवं जैविक ईंधन के साधन क्षेत्रीय जनता के बडे भाग को रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं।
अंततः, नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन की तकनीक नाभिकीय हथियार बनाने की तकनीक से काफ़ी समान है जिससे और अन्य देशो के द्वारा नाभिकीय हथियार बनाये जाने की संभावना से इंनकार नहीं किया जा सकता यदि नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन की तकनीक का विश्व में विस्तार किया जाता है। अगर विश्व में हम हज़ारों नाभिकीय़ रियक्टर्स बनाकर ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सफ़ल हो गये फ़िर भी भविष्य में इन सर्वत्र फ़ैले रियक्टर्स पर आतंकी हमले के प्रयास नहीं होंगें या प्राकृतिक आपदाओं से कोई हानि नहीं होगी, इसकी गारंटी कौन ले सकता है? इसके अलावा, भविष्य में जो नाभिकीय कचरा उत्पन्न होगा, उस उपेक्षित और खतरनाक नाभिकीय कचरे के विशालकाय भंडार का कोई गलत इस्तेमाल नहीं करेगा, यह कहने वाले हम कौन होते हैं?
इन सभी समस्याऒं का हल नवीकरणीय और वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन हैं। ऊर्जा उत्पादन के ये संसाधन अपेक्षाकृत सस्ते तो हैं ही साथ ही इनसे भविष्य में कॊई बडे खतरे नहीं है। ऊर्जा उत्पादन की इन प्रणालियों में क्षेत्रीय जनता को रोज़गार भी मिलता है। वैकल्पिक और नवीकरणीय़ ऊर्जा के संसाधनों का क्रियान्वयन मूल्य वरर्तमान में अन्य प्रणालियों से काफ़ी अधिक है, जिसे कि विश्व भर में शोध को और बढावा देकर के उचित स्तर तक लाया जा सकता है।  नवीकरणीय और वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों ने काफ़ी अनुकरणीय कार्य किया है। उम्मीद है कि भविष्य में वैकल्पिक और नवीकरणीय़ ऊर्जा के ये स्त्रोत ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में क्रान्ति लायेंगे बल्कि, स्वच्छ, सुरक्षित, प्रतिस्पर्धा योग्य, और भय रहित ऊर्जा उत्पादन के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।
                           -मेहेर वान
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