Monday, August 20, 2012

नैनोतकनीक की रोचक दुनियाँ
-मेहेर वान
       रविवार का दिन था। अभय अपने छोटे भाई के साथ बैठकर टेलीविज़न देख रहा था। अभय को कार्टून देखने में बहुत मज़ा आता था, साथ ही उसे शैक्षिक कार्यक्रम भी पसन्द आते। कार्टून कार्यक्रमों की कहानियाँ उसे अच्छी लगतीं, उनमें पेड़ भी बोलने लगते, चूहे नमस्कार करने लगते और हाथी कुर्सी पर बैठ रौब जमाते। यह सब उसे किसी जदुई दुनियाँ में ले जाता जो कि सिर्फ़ उसकी थी। शैक्षिक कार्यक्रमों में उसने कई बार ऐसे कार्यक्रम देखे थे जिनकी वज़ह से वह स्कूल में टीचर के उन प्रश्नों के जबाब दे पाता था जिनके उत्तर उसकी किताबों में कई बार नहीं होते थे। इस कारण से उसका क्लास में रौब जमा रहता। उस दिन टेलीविजन पर जो कार्यक्रम प्रसारित हो रहा था, उसमें यह बताया जा रहा था कि हम सब और पूरी दुनियाँ अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनी है। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, लकड़ी, धातुयें, खाना, बर्तन, खेल का सामान और सबकुछ, जो भी वह अपनी आँखों से अपने आस पास देख रहा था वे सब अणुओं और परमाणुओं की सहायता से ही बनीं थीं। उसे यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ था कि दुनियाँ में उसे दिखने वाली हर चीज़ उसमें अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनी है इसके बावजूद, कि वे वस्तुयें और जीव या पेड़ उसे अलग- अलग दिखते हैं। उनका आकार अलग होता है, उनका रंग अलग होता है, कोई जीव है तो कोई निर्जीव; लेकिन वे सब अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनी होती हैं।
       वह सोच रहा था कि अगर हम सब एक ही तरह के मूलभूत अणुऒं और परमाणुओं से मिलकर बने हैं तो हमारी शक्ल एक दूसरे से अलग क्यों है? चिड़ियाँ चहचहाती हैं, हम बोलते हैं, पड़ोस वाले चाचा जी की गाय रंभाती है, बकरी मिमियाती है और पेड़ तो कुछ भी नहीं बोलते। हमारे दो पाँव होते हैं, गाय के चार पाँव, पेड़ की जड़ें तो ज़मीन में जाकर अनगिनत भागों में बंट जाती है, यहाँ तक कि पत्थरों के तो पाँव ही नहीं होते जबकि वे सब भी अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं। ऐसे न जाने कितने सवाल अभय के दिमाग में आने लगे थे। वह परेशान हो उठा था, दुनियाँ उसे बहुत जादुई लग रही थी, अपने भीतर न जाने कितने रहस्यों को छुपाये हुये।
       अभय को अणुओं के बारे में और अधिक जानने की इच्छा हो रही थी। वह सोच रहा था कि कल वह स्कूल जाकर अपने टीचर से इसके बारे में विस्तार से पूछेगा। तभी दरवाजे की घंटी बजी और मम्मी जी ने जाकर दरवाजा खोला। राजेश भैया शायद किसी काम से घर आये हुये थे। राजेश भैया भी विज्ञान की पढाई कर रहे थे। अभय तुरन्त सीढ़ियों से उतरकर नीचे वाले कमरे में पहुँच गया। कमरे में पहुँचते ही, उसने राजेश भैया को प्रणाम किया और तुरन्त उनसे एक सवाल पूछा, “भैया! इन अणुओं और परमाणुओं को आपने देखा है”? राजेश भैया यह सुनकर अचानक चौंक पड़े, और मुस्कुराते हुये बोले “अरे! अभय, तुमने अणुओं और परमाणुओं के बारे में कहाँ सुन किया?” अभय ने बताया कि वो टेलीविजन पर एक कार्यक्रम देख रहा था जिसमें बताया जा रहा था कि हम सब अणुओं और परमाणुओं से मिलकर ही बने हैं। अभय ने संशय की मुद्रा वाला चेहरा बनाकर पूछा, क्या यह सच है? भैया।
      राजेश भैया ने हाँ कहते हुये अपना सिर हिलाया। इतना सुनते हुये अभय ने तुरन्त एक नयी फरमाइश कर दी। अब अभय का भी अणुओं को देखने का मन था। उसने पूछा, भैया आपने अणुओं को कैसे देखा? उसके सवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। राजेश भैया को उसके पापा के पास किसी काम से आये थे। उन्होंने पापा जी से बात करने के बाद अभय से कहा कि वो आज दोपहर में अपनी प्रयोगशाला जा रहे हैं। अगर वह भी उनके साथ चलकर प्रयोगशाला देखना चाहता है तो चल सकता है। राजेश भैया यूनीवर्सिटी में डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे थे। शाम के समय पापा भी खाली ही थे। अभय के पापा से राजेश भैया के साथ उनकी लैब चलने के लिये सहमति दे दी। अभय अपने पिता जी के साथ सही समय पर राजेश भैया के घर पहुँछ गये, इसके बाद वो लोग यूनीवर्सिटी में राजेश भैया की लैब गये। राजेश भैया ने बताया कि हमारे यहाँ कभी छुट्टी नहीं होती, हम छात्रों में से कोई भी जब चाहे आकर यहाँ आकर पढ़ सकता है या अपने प्रयोग कर सकता है।
      राजेश भैया सबसे पहले अभय को पढाई वाले कमरे में ले गये। वहाँ बहुत सारी कुर्सियाँ एक गोल मेज के चारों तरफ़ लगी हुयीं थीं। इससे यह लग रहा था कि यहाँ पर बैठकर वैज्ञानिक लोग आपस में बहस करते होंगे। राजेश भैया ने अभय को भी एक कुर्सी पर बैठाया। अभय बहुत छोटा था, वह अभी पहली कक्षा में ही पढ़ता था। राजेश भैया ने पूछना शुरु किया, “तो अभय! क्या कह रहे थे आप?” अणु और परमाणुओं को मैनें सीधे आँखों से देखा तो नहीं है, क्योंकि ये नहुत ही छोटे होते हैं। मगर उन्हें कई अन्य तरीकों से बहुत निश्चितता के साथ महसूस किया जा सकता है। ठीक उसी तरह से जैसे मम्मी की आवाज़ सुनकर ही तुम समझ जाते हो कि दरवाजा मम्मी जी ही खटखटा रहीं हैं। अणुओं और परमाणुओं को देखने के लिये बहुत बड़े और मंहगे यंत्रों की आवश्यक्ता होती है, जो कि हमारी प्रयोगशाला में उपलब्ध नहीं हैं। इसके बावजूद हम किसी पदार्थ में यहाँ तक निश्चितता के साथ कह सकते हैं कि अमुक स्थान पर अमुक तरह का परमाणु उपस्थित है। अभय की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसने पूछा कि भैया यह सब आप कैसे करते हैं? क्या मुझे आप यह दिखा सकते हैं?
      राजेश भैया ने अभय को बगल वाले कमरे में रखे यंत्रों को देखने चलने की ओर इशारा करते हुये कहा, कि अभय यह जगह बहुत ज़्यादा साफ रखनी पड़ती है। बहुत सारे आवारा परमाणु जो कि हवा में टंगे रहते हैं या जो कि हमारे शरीर से चिपक कर यहाँ तक आ जाते है। इस तरह ये गैर जरूरी परमाणु हमारे अति सूक्ष्म और अतिसंवेदनशील प्रयोगों को प्रभावित करते हैं। इन गैरजरूरी अणुओं और परमाणुओं से बचने के लिये हमें अपने आप को आधुनिक तकनीक से साफ़ करना पड़ता है और तब स्वच्छ ड्रेस पहनकर प्रयोगशाला के मुख्य कक्ष के अन्दर घुसना होता है। अभय और राजेश भैया सबसे पहले अपने कपड़ों धूल आदि के कणों से को स्वच्छ करने के लिये क्लीन रुम में गये जहाँ  उनके कपड़ों, सिर के बालों, हाथों आदि में लगे धूल के कणों को साफ किया गया। इसके बाद उन्होंने एक विशेष ड्रेस पहनी जो कि प्रयोगशाला में पहनना अनिवार्य होती है। इसके बाद वह लोग प्रयोगशाला के मुख्य कक्ष में अन्दर गये। जहाँ पर बहुत से यंत्र रखे हुये थे। अभय इतने सारे यंत्र एक साथ एक कमरे में रखे देखकर बहुत आश्चर्य चकित हो गया। उसे लगा जैसे वह किसी फ़िल्म में देखे हुये वैज्ञानिक की प्रयोगशाला में आ गया है। उसे याद आया कि आयरन मैन, बैटमेन या मैट्रिक्स फिल्मों में कुछ इसी तरह की प्रयोगशालायें होतीं हैं जहाँ पर वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं। 
       राजेश भैया ने बताया कि इस प्रयोगशाला को नैनोटेकनोलॉजी लैब के नाम से जाना जाता है। इस पर अभय के मन में तुरन्त सवाल आया कि यह नैनोटेकनोलॉजी क्या होती है?  तो हँसते हुये राजेश भैया ने जबाब दिया कि इसे विस्तार से जानने के लिये अभय, आपको अभी बड़ा होना पड़ेगा और साथ ही विज्ञान का बहुत अच्छी तरह से अध्य्यन करना पड़ेगा। नैनो तकनीक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से अतिसूक्ष्म पदार्थों का अध्य्यन किया जाता है। इन पदार्थों का अध्य्यन करने के लिये बहुत अत्यधिक क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शियों का इस्तेमाल किया जाता है। राजेश भैया की लैब में कई प्रकार के सूक्ष्मदर्शी रखे हुये थे। जिनमें से एक था आणविक बल सूक्ष्मदर्शी। यह सूक्ष्मदर्शी अत्यधिक उच्च क्षमता वाला होता है और इसकी सहायता से किसी पदार्थ की सतह पर परमाणुओं की स्थिति के बारे में बहुत निश्चितता के साथ अध्य्यन किया जा सकता है। राजेश भैया ने बताया कि इसकी खोज 1986 में हुयी थी। इस सूक्ष्मदर्शी की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था, जो कि विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कारों में से एक है।
      इसकी शुरुआत बहुत वर्षों पहले हुयी थी। राजेश भैया बता रहे थे कि लगभग चार सौ साल पहले ही एक दार्शनिक “डेमोक्रिट्स” ने कहा था कि “अति दीर्घ को समझने के लिये अति सूक्ष्म को समझा जाना चाहिये।“ बीसवीं सदी में अति सूक्ष्म को समझने की दौड़  में वैज्ञानिक भी शामिल हो गये। वे जानना चाहते थे कि यदि किसी पदार्थ को बहुत सूक्ष्म टुकडों में तोड दिया जाये तो उस पदार्थ की विशेषताओं पर सूक्ष्मता का क्या असर पडता है। पदार्थ को एक मीटर के लाखवें हिस्से के बराबर तोडने के बाद शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पदार्थ की कुछ विशेषताओं का पदार्थ के आकार का असर पडता है। तब सूक्ष्मदर्शियों की क्षमता बढने के साथ पदार्थ के और छोटे टुकडों का अध्य्यन करना संभव हो पाया। वैज्ञानिकों ने पदार्थों को एक मीटर के दस करोड्वें हिस्से के बराबर बनाकर उसका अध्य्यन करने की कोशिश की। एक मीटर के दस करोडवें हिस्से को एक “नैनो मीटर” कहा जाता है। नैनो ग्रीक भाषा का शब्द होता है जिसका अर्थ होता है ”बौना”। यदि इसे मानव के केश [बाल] की मोटाई के सापेक्ष समझने की कोशिश करें तो एक नैनोमीटर आम तौर पर मानव के बाल की मोटाई के एक लाखवें हिस्से के बराबर होता है। अगर एक नैनोमीटर की लम्बाई वाले डिब्बे में परमाणु रखने की कोशिश करें तो हाइड्रोजन के दस परमाणु इस डिब्बे में रखे जा सकेंगे क्योंकि हाइड्रोजन के एक परमाणु का व्यास ०.१ नैनोमीटर होता है। मानव के डी.एन.ए. की चौडाई २.५ नैनोमीटर होती है। पदार्थ के बहुत ही सूक्ष्म यानि कि नैनोमीटर के आकार वाले टुकडों की विशेषतायें और निर्माण की विधियों का अध्य्यन करने वाली तकनीक “नैनो-तकनीक” कही जाती है।
        यह जानकर अभय की उत्सुकता लगातार बढ़ती जा रही थी। वह जानना चाहता था कि इतनी सूक्ष्म तकनीक की सहायता से वैज्ञानिक लोग करते हैं? इतनी महीन तकनीक और इतने बड़े बड़े यंत्रों का इस्तेमाल किस लिये होता है, और ये यंत्र किस काम आते हैं। राजेश भैया ने फिर बताना शुरु किया। नैनो-तकनीक (Nano-Technology) वह तकनीक है, जिसमें किसी पदार्थ निर्माण की प्रक्रिया में परमाणुओं को इस तरह व्यवस्थित किया जाता है कि निर्मित संरचना का आकार नैनो मीटर के स्तर का हो। इस तकनीक के द्वारा पदार्थ की संरचना में अणुओं के स्तर तक फेरबदल किया जा सकता है, एक तत्व के अणुओं के स्थान पर दूसरे तत्व के अणुओं को स्थापित करके नये तरह के पदार्थ की संरचना भी की जा सकती है। ये नये पदार्थ नई रासायनिक, भौतिक और जैविक विशेषताओं वाले होते हैं। सामान्यतः, पदार्थों की नैनो आकार की अवस्था में कई विशेषतायें बडे आकार की अवस्था वाली विशेषताओं से भिन्न होती हैं। यह भिन्नता मात्र पदार्थ का आकार कम होने के कारण ही प्रकट होती है। नैनो तकनीक को  विज्ञान की किसी एक शाखा में नहीं बाँधा जा सकता है। नैनो-तकनीक का सामंजसय विज्ञान की लगभग हर एक शाखा के साथ है और नैनो तकनीक का उपयोग भी अन्य की अपेक्षा अधिक व्यापक है। नैनो तकनीक का सबसे पहले उपयोग जीव विज्ञान और इलैक्ट्रॉनिक्स में हुआ। इस तकनीक की सहायता से कैंसर का इलाज सम्भव करने के प्रयास हो रहे हैं, और इन प्रयासों में प्रारम्भिक सफलतायें भी मिलीं हैं। राजेश भैया ने बताया कि अभय इन सब बातों को विस्तार से अगली कक्षाओं में पढ़ेगा। साथ ही, तब उसे इन बातों के अर्थ और बेहतर तरीके से समझ में आयेंगे, जब वह विज्ञान के बारे में और समझ दारी हासिल कर लेगा।
       इसके बाद अभय भैया ने ऐसी बहुत सी फोटोग्राफ दिखायी जो कि इन सूक्ष्मदर्शियों की सहायता से खींची गयीं थी। जिन पदार्थों की ये तस्वीरें थीं वे बहुत छोटे थे। लगभग नैनोमीटर के आकार के, यानि कि हमारे बालों की मोटाई से लगभग की हज़ार गुना छोटे। जो कि उनके कम्प्यूटर में पहले से सुरक्षित रखे हुये थे।
  
      इतनी सूक्ष्म और सुन्दर तस्वीरें अभय और अभय के पिता जी ने पहले कभी भी नहीं देखीं थीं। अभय तो इतना खुश था कि बातें करते करते कब शाम हो गयी उसे पता ही नहीं चला। अभी भी उसे राजेश भैया से बहुत कुछ पूछना था। बहुत सारे सवाल उसके दिमाग में खलबली मचा रहे थे। लिकिन पापा जी ने कहा कि आज काफ़ी समय हो गया है अब घर चलना चाहिये। राजेश भैया को भी कुछ प्रयोग करने थे जिनके कारण वह आज रविवार के दिन भी प्रयोगशाला आये थे। अभय के पिता जी ने राजेश भैया को धन्यवाद देते हुये कहा कि अभय को आज बहुत मज़ा आया है, वह अगले रविवारों  में से जिस भी दिन राजेश भैया के साथ प्रयोगशाला आना पसन्द करेगा।  अभय ने भी पिताजी के स्वर में हाँ कहा। राजेश भैया भी बहुत खुश हुये थे। उन्होनें अभय से वादा किया कि वह आगे भी उसे इस विषय में बहुत सी रोचक बातें बतायेंगे।
  (सभी चित्र - साभार)